मंगलवार, 24 सितंबर 2013

मेरा निजी जीवन दर्शन

कभी-कभी मुझे बहुत आश्चर्य होता है कि मै खुद के बारे में कितना कम जानता हूँ । खुद से सवाल पूछता हूँ कि मै खुद के बारे में ज्यादा से ज्यादा कैसे जान सकता हूँ । सवाल कई है पर जवाब नहीं । इन सवालों के जवाब कंहा मिलेंगे ये भी नहीं पता । इंसानी जीवन का सबसे मूलभूत प्रश्न यही है कि मेरा उद्देश्य क्या है और आज उसी स्थिति से मै जूझ रहा हूँ । ना ही कोई मार्गदर्शक है और न ही कोई सहायता देने वाला । सब कुछ खुद को ही करना है । एक बात मैंने अपने जीवन से सीखी है वो ये कि दुनिया में इंसान अकेला आता है और अकेला ही मरता है तथा अकेला ही जीता है देखने के लिए तो दोस्त, परिवार, रिश्तेदार आदि लोग होते है पर वास्तव में देखा जाए तो इंसान सारी जिन्दगी अकेला ही जीता है । पर एक सत्य यह भी है कि इनके बिना भी हमारी जिंदगी एक बोझ सी लगने लगेगी ।इस जीवन को जीने का सार्थक तरीका है लक्ष्य को तय करना और उसकी पूर्ति में लगे रहना ।

सोमवार, 9 सितंबर 2013

दक्षिण भारत की यात्रा की शुरूआत

दक्षिण भारत का एक स्टेशन

सुन्दर पहाडी द्रश्य

सुन्दर प्रतिमा तिरूपति नगर मे स्थित
मै हमेशा अपने दोस्तों से कहता हूँ कि मै लम्बे समय की योजनाएँ नहीं बनाता हूँ खासकर पर्यटन की तो नहीं । मै हमेशा पर्यटन कि योजना दो या तीन दिन पहले ही बनाता हूँ । इस बार भी यहीं हुआ । एक दोस्त ने तीन दिन पहले पूछा कि दक्षिण भारत घूमने चलना है चलोगे तो मैने कहा अगले दिन बतायेंगे । देखा रोजगार भी धीमी गति मे हैं । घर मे पूछा तो इजाजत मिल गई इसलिए हाँ कर दी । बस फिर क्या हमारा बैग पैक हो गया और दो दिन बाद वो शुभ घडी आ ही गई अर्थात २०-७-२०‍१३ को जब हमे निकलना था । सबसे पहले तो हम कानपुर सैट्रंल रेलवे स्टेशन पहुँचे जँहा से हमारी ट्रैन थी झांसी इण्टरसिटी एक्सप्रेस जिसका समय था शाम को ०६ बजकर ३० मिनट । खैर जिसके लिए भारतीय रेल मशहूर है  वो ट्रैन चली ०६ बजकर ४५ मिनट पर जिसने हमें पहुचाँया ‍१‍१ बजे झाँसी स्टेशन पर । हमारा मन तो बहुत था झाँसी घूमने का पर मन मसोस कर रह गये  वीरबालाओं की धरती पर भ्रमण करने को क्योंकि हमारी ट्रेन  जो थी ०‍१ बजकर ‍१० मिनट की । इसलिए हमें स्‍टेशन पर रूक कर ही दो घण्टे का समय बिताना था । इस पर्यटन कार्यकम्र मे पाँच लोग थे ।