रविवार, 11 नवंबर 2018

आत्मसम्मान

आत्मसम्मान एक ऐसा शब्द है जिसे हर इंसान को अपने अंदर जीवित रखना चाहिए जो इस शब्द की महत्ता को नही समझ सकता वो इंसान हमेशा पीछे और दूसरों पर आश्रित ही रह जायेगा अगर कठोर शब्दों में कहे तो दूसरों के टुकड़ों पर पलने वाला कुछ समय बाद दूसरों पर आश्रित व्यक्ति की यही कहानी और सच्चाई होती है. एक कहावत मुझे याद आ रही है "पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं" जो बिल्कुल सत्य है. अगर व्यक्ति इस सच्चाई को समय रहते नहीं चेत लेता है तो उसे समय इस सच्चाई का अनुभव करा देती है.

रविवार, 7 अक्तूबर 2018

सपनों और लक्ष्य में अंतर

अक्सर हम अपने लिए लक्ष्य तय करते है कि हमें क्या पाना है. खासतौर पर यह नए साल में होता है पर अक्सर देखा जाता है कि ज्यादातर लक्ष्य पाने की कोशिशे एक से दो महीने में ही दम तोड़ने लगती है. आखिर ऐसा क्यों होता है आज हम इसी पर चर्चा करेंगे.
ज्यादातर लोग सिर्फ सपने ही देखते है लक्ष्य नहीं तय करते और वो भ्रम में होते है कि यह हमारा लक्ष्य है जबकि वो उनका सपना ही होता है जो सपना ही रह जाता है और कभी पूरा नहीं होता है. सपने देखना गलत नहीं है सपने ही तो आधारशिला रखते है आगे की सफलता के लिए पर जरूरी है कि एक समय के बाद उन सपनों को लक्ष्य बनाया जाए.
अब बात करते है लक्ष्य और सपनों के बीच के अंतर के बारे में जैसे मैंने तय किया कि मुझे अपना वजन घटाना है तो इसे मै सिर्फ सपना ही कहूँगा क्योंकिं यंहा आपने अपनी कोई कार्ययोजना का निर्धारण नहीं किया है और ना ही इस कार्य के लिए कोई समय सीमा का निर्धारण. हाँ अगर आपने यह तय किया कि मै अपना वजन 10 किलो या 15 किलो या कुछ और 2 महीने में या कोई और समय सीमा में घटाना है तो यह आपका लक्ष्य हुआ.
कहने का मतलब लक्ष्य निर्धारण करते समय आप समय अवधि और लक्ष्य की मात्रा मतलब लक्ष्य की स्पष्टता भी तय करे. अब इस छोटी से बात का आपके लक्ष्य निर्धारण पर क्या प्रभाव पड़ेगा. तो जवाब है पड़ेगा दरअसल उसी दिन से आप लक्ष्य के बारे में सोचने लगेंगे की यह लक्ष्य कैसे पाया जाए. इसके लिए मै क्या करूँ.इससे आपका दिमाग भी कुछ हद तक आपको प्रेरणा देगा और सतर्क रखेगा अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए.
अगली पोस्ट में हम चर्चा करेंगे कि लक्ष्य तय करने के बाद कि प्रक्रिया के बारे में.

शनिवार, 6 अक्तूबर 2018

रोजाना डायरी

आज से मै एक नई आदत डाल रहा हूँ खुद में हालाँकि अभी तो ये एक प्रयास है सफल होने की पूरी उम्मीद है. वो आदत है रोजाना डायरी लिखने की. हालाँकि आप सब भी उससे जुड़े रह सकते है क्योंकि यह डायरी मै अपने इस ब्लॉग में लिखूंगा. हाँ डायरी नितांत व्यक्तिगत चीज या भावना होती है पर मै यह सोचता हूँ कि व्यक्तिगत डायरी लिखने का क्या फायदा जो सिर्फ लिखने के बाद अलमारी के किसी कोने में पडे रह कर धूल खाएँ और दूसरी बात ये कि हो सकता है कि जाने अनजाने हि सही कोई एक व्यक्ति भी मेरे इन साधारण अनुभवों का लाभ उठा सके. मेरा इसमें एक लोभ और भी है और वो ये कि लिखने से मेरी काफी चिंताएं ख़त्म हो जाती है और मुझे काफी मानसिक आराम मिलता है साथ ही इतने समय तो मै स्मार्टफोन से दूर रहकर कोई सकारात्मक और रचनात्मक कार्य कर सकूँगा. मै तो अब अपनी इस आदत या सच कहूँ तो बीमारी स्मार्टफोन की से बहुत परेशान हो गया हूँ परन्तु मेरी हालत एक नशेबाज जैसी है जो सोचता है कि आज पी ले कल नहीं पियेंगे. आज के लिए बस इतना ही ज्ञान काफी है क्योकि जितना अन्दर से भावनाएँ बाहर आएँगी उतना ही लिखा जाएगा.

मंगलवार, 18 सितंबर 2018

दक्षिण भारत दर्शन

दक्षिण भारत का एक स्टेशन

सुन्दर पहाडी द्रश्य

सुन्दर प्रतिमा तिरूपति नगर मे स्थित
मै हमेशा अपने दोस्तों से कहता हूँ कि मै लम्बे समय की योजनाएँ नहीं बनाता हूँ खासकर पर्यटन की तो नहीं । मै हमेशा पर्यटन कि योजना दो या तीन दिन पहले ही बनाता हूँ । इस बार भी यहीं हुआ । एक दोस्त ने तीन दिन पहले पूछा कि दक्षिण भारत घूमने चलना है चलोगे तो मैने कहा अगले दिन बतायेंगे । देखा रोजगार भी धीमी गति मे हैं । घर मे पूछा तो इजाजत मिल गई इसलिए हाँ कर दी । बस फिर क्या हमारा बैग पैक हो गया और दो दिन बाद वो शुभ घडी आ ही गई अर्थात २०-७-२०‍१३ को जब हमे निकलना था । सबसे पहले तो हम कानपुर सैट्रंल रेलवे स्टेशन पहुँचे जँहा से हमारी ट्रैन थी झांसी इण्टरसिटी एक्सप्रेस जिसका समय था शाम को ०६ बजकर ३० मिनट । खैर जिसके लिए भारतीय रेल मशहूर है  वो ट्रैन चली ०६ बजकर ४५ मिनट पर जिसने हमें पहुचाँया ‍१‍१ बजे झाँसी स्टेशन पर । हमारा मन तो बहुत था झाँसी घूमने का पर मन मसोस कर रह गये  वीरबालाओं की धरती पर भ्रमण करने को क्योंकि हमारी ट्रेन  जो थी ०‍१ बजकर ‍१० मिनट की । इसलिए हमें स्‍टेशन पर रूक कर ही दो घण्टे का समय बिताना था । इस पर्यटन कार्यकम्र मे पाँच लोग थे । 



बुधवार, 1 अगस्त 2018

इलाहाबाद यात्रा नये अनुभव

कल इलाहाबाद गया था बहन को परीक्षा देनी थी जोकि शिक्षक भर्ती की परीक्षा थी तो इस परीक्षा में बडे परेशान हुए होना लाजिमी भी था क्योंकि परीक्षा कराने वाली संस्था ने अपने हिसाब से नियम जो बनाये थे। इस संस्था ने परीक्षार्थी को पास के परीक्षा केंन्द्र ना देकर दूर के परीक्षा केंन्द्र निर्धारित किये थे और वो भी २०० से ३०० किमी दूर। उसके पीछे कारण बस ये था कि परीक्षा कराने वाली संस्था ने विषयों के हिसाब से परीक्षा केंन्द्र निर्धारित किये थे। परन्तु उसने ये नहीं सोचा कि अपनी सुविधा के लिए परीक्षार्थियों को कितना परेशान कर रहा है।

जिस दिन परीक्षा थी उस दिन इलाहाबाद में सुबह से हीं बारिश हो रही थी। कई परीक्षार्थी जो सुबह जल्दी ही परीक्षा केंन्द्र पहुंच गये वंहा कोई सुविधा ना हौने के कारण सडक पर खडे होकर भीगते रहे। कोई गाजियाबाद तो कोई कुशीनगर और कोई गोरखपुर यानि कि उत्तरप्रदेश का हर शहर से लोग आये थे। लोगों का समय, रूपया तो व्यय हुआ ही साथ ही परेशानी अलग से ये है सरकारी कार्यप्रणाली।

उस पर इलाहाबाद की सडकें भी गजब ढा रही थी कहीं भी हमें ऐसी सडक नहीं मिली जोकि गड्डा मुक्त हो और बारिश कि वजह से जलभराव अपनी चरमसीमा पर था। बारिश में कपडें तो कम ही भींगे जूते और मोजे ज्यादा भीग गये। खैर परीक्षा ख्त्म होने के पश्चात हम स्टेशन आ गये जंहा भारतीय रेल की लेटलतीफ की कार्यप्रणाली के चलते सीमांचल एक्सप्रेस मिल गयी जोकि अपने समय से ढाई घन्टा देरी से चल रही थी वर्ना उसके बाद फिर साढे पांच बजे ही अगली ट्रैन हमें मिलती और वो भी देरी से आती जरूर। सुबह का किस्सा तो रह ही गया सुबह चार बजे जैसे तैसे हम स्टेशन पहुंचे तो ट्रैन पहले पंद्रह मिनट लेट थी जो धीरे धीरे करते हुए डेढ घन्टा लेट हो गयी। ट्रेन थी आनंद विहार मंडवाडीह एक्सप्रेस जोकि चार बजकर पचास मिनट पर थी पर आई छः बजे पहुंचना था सात बजकर तीस मिनट पर तो हम पहुंचे नौ बजकर तीस मिनट पर। खैर एक सबक मिला जोकि पहले भी पता था कि अगर ट्रेन से जाना है तो दो से तीन घन्टे की देरी के लिए तैयार रहे और विशेष परिस्थितियों उससे भी ज्यादा।