रविवार, 7 अक्तूबर 2018

सपनों और लक्ष्य में अंतर

अक्सर हम अपने लिए लक्ष्य तय करते है कि हमें क्या पाना है. खासतौर पर यह नए साल में होता है पर अक्सर देखा जाता है कि ज्यादातर लक्ष्य पाने की कोशिशे एक से दो महीने में ही दम तोड़ने लगती है. आखिर ऐसा क्यों होता है आज हम इसी पर चर्चा करेंगे.
ज्यादातर लोग सिर्फ सपने ही देखते है लक्ष्य नहीं तय करते और वो भ्रम में होते है कि यह हमारा लक्ष्य है जबकि वो उनका सपना ही होता है जो सपना ही रह जाता है और कभी पूरा नहीं होता है. सपने देखना गलत नहीं है सपने ही तो आधारशिला रखते है आगे की सफलता के लिए पर जरूरी है कि एक समय के बाद उन सपनों को लक्ष्य बनाया जाए.
अब बात करते है लक्ष्य और सपनों के बीच के अंतर के बारे में जैसे मैंने तय किया कि मुझे अपना वजन घटाना है तो इसे मै सिर्फ सपना ही कहूँगा क्योंकिं यंहा आपने अपनी कोई कार्ययोजना का निर्धारण नहीं किया है और ना ही इस कार्य के लिए कोई समय सीमा का निर्धारण. हाँ अगर आपने यह तय किया कि मै अपना वजन 10 किलो या 15 किलो या कुछ और 2 महीने में या कोई और समय सीमा में घटाना है तो यह आपका लक्ष्य हुआ.
कहने का मतलब लक्ष्य निर्धारण करते समय आप समय अवधि और लक्ष्य की मात्रा मतलब लक्ष्य की स्पष्टता भी तय करे. अब इस छोटी से बात का आपके लक्ष्य निर्धारण पर क्या प्रभाव पड़ेगा. तो जवाब है पड़ेगा दरअसल उसी दिन से आप लक्ष्य के बारे में सोचने लगेंगे की यह लक्ष्य कैसे पाया जाए. इसके लिए मै क्या करूँ.इससे आपका दिमाग भी कुछ हद तक आपको प्रेरणा देगा और सतर्क रखेगा अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए.
अगली पोस्ट में हम चर्चा करेंगे कि लक्ष्य तय करने के बाद कि प्रक्रिया के बारे में.

शनिवार, 6 अक्तूबर 2018

रोजाना डायरी

आज से मै एक नई आदत डाल रहा हूँ खुद में हालाँकि अभी तो ये एक प्रयास है सफल होने की पूरी उम्मीद है. वो आदत है रोजाना डायरी लिखने की. हालाँकि आप सब भी उससे जुड़े रह सकते है क्योंकि यह डायरी मै अपने इस ब्लॉग में लिखूंगा. हाँ डायरी नितांत व्यक्तिगत चीज या भावना होती है पर मै यह सोचता हूँ कि व्यक्तिगत डायरी लिखने का क्या फायदा जो सिर्फ लिखने के बाद अलमारी के किसी कोने में पडे रह कर धूल खाएँ और दूसरी बात ये कि हो सकता है कि जाने अनजाने हि सही कोई एक व्यक्ति भी मेरे इन साधारण अनुभवों का लाभ उठा सके. मेरा इसमें एक लोभ और भी है और वो ये कि लिखने से मेरी काफी चिंताएं ख़त्म हो जाती है और मुझे काफी मानसिक आराम मिलता है साथ ही इतने समय तो मै स्मार्टफोन से दूर रहकर कोई सकारात्मक और रचनात्मक कार्य कर सकूँगा. मै तो अब अपनी इस आदत या सच कहूँ तो बीमारी स्मार्टफोन की से बहुत परेशान हो गया हूँ परन्तु मेरी हालत एक नशेबाज जैसी है जो सोचता है कि आज पी ले कल नहीं पियेंगे. आज के लिए बस इतना ही ज्ञान काफी है क्योकि जितना अन्दर से भावनाएँ बाहर आएँगी उतना ही लिखा जाएगा.