हर बात के प्रत्यक्ष दर्शी हैं हम सारे फिर भी न जाने क्यों अप्रत्यक्ष भाव में जिए जा रहे हैं हम जरुरत तो हमारी भी जहाज की है फिर भी समंदर का सफ़र नाव में किये जा रहे हैं हम जब से मिला है "आम आदमी" का तमगा बस उस शब्द के स्वभाव में जिंदगी जिए जा रहे हैं हम अगर प्रत्यक्ष दर्शी हो तो गवाह बनो समंदर पार होना है तो जहाज बनो अगर आदमी हो तो आम नहीं, खास बनो कब तक साक्षी रहोगे, अब तो साक्ष्य बनो....
1 टिप्पणी:
यही है आज की बात .आज का सच .कुछ अलग बात है कुछ हटके बात है इस रचना में .एक नया राग है इस रचना में .
इसे विचार कविता कहूं या विचार गद्य या कहूं चिंतन के क्षण ,जो भी ला -ज़वाब है .यह मेरी तेरी सबकी बात है .
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